Friday, November 26, 2010

मैं तन्हा था..

मैं तन्हा था, मंजिल मंजिल भटक रहा था....
तन्हाई का बोझ उठाये...
दिल में अपना दर्द छुपाये...

मैं तन्हा था..

यूँ ही एक दिन चलते चलते..
हुस्न का जलवा सामने आया...
बेहद रंगीन, बेहद सादा.....
साँसों में उसकी अजब सी खुशबू...
उस में था कुछ ऐसा जादू...
यूँ मेरे एहसास पे छाया..
उसकी नजर से रोशनी लेकर..
मैंने अपना सहर सजाया...
मैंने उसे अपना महबूब बनाया.....
मैंने उसमे क्या कुछ देखा....
मैंने उसमे सब कुछ पाया...
गायब हुयी तन्हाई इस दिल से...
नयी उमंग इसमें छायी....
मिली गयी एक नयी जिन्दगी...
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